मंगलवार, 20 नवंबर 2012

कब तक रहेगा - इंडिया, दैट इज भारत





किसी भारतीय भाषी से हमारे देश का नाम पूछिये तो वह कहेगा - भारत , मैं भी कहूंगा - भारत , लेकिन किसी अंग्रेज से पूछ कर देखिए, वह कहेगा - इंडिया, लेकिन क्या किसी देश के दो - दो नाम होते है ? अमेरिका के कितने नाम है ? और ब्रिटेन के ? क्या श्रीलंका का कोई अंग्रेजी नाम भी है ? स्वाधीनता से पूर्व श्रीलंका को ' सीलोन ' तथा म्यांमार को ' बर्मा ' के नाम से जाना जाता था, लेकिन जब उनमें राष्ट्रीयता का बोध जागा, तो उन्होंने अपना नाम बदल लिया, आज उन्हें उनके पूर्व नामों से कोई नहीं जानता है, न लिखता है और न बोलता है और अब सारी दुनियां उन्हें श्रीलंका और म्यांमार के नाम से जानती है । यह हमारे देश का दुर्भाग्य है कि हम अभी भी दो - दो नाम ढो रहे है , हम अपने को भारत मानते है, लेकिन दुनियां हमें इंडिया कहती है । और भारत सरकार आज भी अपने को गवर्नमेंट ऑफ इंडिया लिखती है । 



ब्रिटिश शासकों के चंगुल से तो ' इंडिया ' मुक्त हो गया किन्तु तब तक यह आर्यावर्त तो किसी तरह रह ही नहीं गया था, भारतवर्ष अथवा हिन्दुस्थान भी नहीं बन पाया । क्योंकि सत्ता हस्तांतरण के समय हमारे स्वदेशी शासन का सूत्र संचालन जिन तथाकथित कर्णधारों ने येन - केन - प्रकारेण अपने हाथों में लिया वे भारतीय संस्कृति, भाषा, साहित्य, धर्म, दर्शन व परंपरा, विज्ञान, इतिहास और जीवनमूल्यों के प्रति हीन भावना की मनोग्रन्थि से ग्रस्त थे, वे केवल नाम और शरीर से भारतीय थे । उन्होंने एक ऐसे समाज के निर्माण की नीव डाली जो भारतीयता से शून्य थी और इस देश को इंडिया, दैट इज भारत बना दिया । पिछले पैंसठ वर्षो में उसमें से भी भारत तो लुप्त ही होता जा रहा है, क्योंकि इंडिया उसको पूर्ण रूप से निगलता जा रहा है ॥ शकों, हूणों, तुर्को, मुगलों, अरबों, अफगानों के बर्बर जेहादी आक्रमण और शासन जिसका स्वरूप विकृत नहीं कर सके, उसे केवल दो - सौ वर्षो की ब्रिटिश शासकों की कुसंगति और शिक्षा पद्धति ने आपाद - मस्तक रूपांतरित कर दिया ।
स्वतंत्रा प्राप्ति से पूर्व जो युवा पीढ़ी देश में थी उसकी सारी शक्ति संचित रूप से एक महान लक्ष्य को समर्पित थी । वह लक्ष्य था - पराधीनता की बेड़ियों को तोड़ कर देश को विदेशियों की दासता से मुक्त करना । अपनी सारी शक्ति से वह पीढ़ी अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिये दृढ़ संकल्प थी और अंततः वह सफल भी हो गई । किन्तु विडम्बना यह है कि युवा पीढ़ी के उस बलिदान का श्रेय तत्कालीन स्वार्थान्ध किन्तु चतुर नेताओं ने अपनी झोली में समेट कर पूरी पीढ़ी को घोर चाटुकारिता नपुंसकता के पर्यायवाची गीत ' दे दी हमें आजादी बिना खड़ग बिना ढाल ' की लय पर नचा दिया । न केवल इतना अपितु तिल - तिल कर अपने प्राणों की आहुति देने वाले महाराणा प्रताप, क्षत्रपति शिवाजी, गुरू गोविन्द सिंह, गोकुल सिंह, रामप्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह, पं. नाथूराम गोडसे, मदन लाल ढिंगरा, वीर सावरकर जैसे वीरों की नितांत अवहेलना कर उन्हें लांक्षित किया । 
स्वाधीना प्राप्ति से पूर्व और पश्चात की स्थिति का विश्लेषण करने पर जो दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य प्रकट होता है वह यह है कि पहले तो अभारतीय अर्थात अहिन्दू ही भारत तथा भारतीयता को नष्ट करने में संलग्न थे, किन्तु आज भारतीय और हिन्दुओं के द्वारा ही भारतीयता तथा हिन्दुत्व को नष्ट करने का कार्य किया जा रहा है । भारतीय जीवन पद्धति के सोलह संस्कारों में से अधिकांश तो भुला दिये गए हैं, शेष भी शीघ्र भुला दिये जाने की स्थिति में है । विवाह जैसे महत्वपूर्ण संस्कार पंजीयक के कार्यालय में सम्पन्न होने लगे हैं ।

वैदिक विधि से सम्पन्न होने वाले विवाहों में भी केवल परिपाटी का ही परिचलन किया जाने लगा है । जन्मदिन तो बहुत पहले से ही
' बर्थ - डे ' के रंग में रंग गए है, जिनकी जीवन - ज्योति को जलाया नहीं बल्कि बुझाया जाता है । पारिवारिक संबोधन और संबंध मम्मी - डैडी, आंटी - अंकल, मदर - फादर, कजन - बर्दर आदि में परिवर्तित हो गए है । सामाजिक समारोह, संस्कारों आदि के अवसर पर निमंत्रण पत्रों को संस्कृत, हिन्दी अथवा अन्य भारतीय भाषाओं में मुद्रित कराना उनकी दृष्टि में स्वयं को पिछड़ा सिद्ध करना है । 
सत्तालोलुप अधिकांश नेता सत्ता हस्तांतरित होते ही देश प्रेम को भुल कर जो कुछ त्याग - तप करने का नाटक उन्होंने किया था, उससे सहस्र गुणा अधिक समेटने के लिए आतुर हो उठे । उभरती हुई युवा पीढ़ी और देश के पुर्निर्माण की बात भूल कर वे अपने निर्माण में जुट गए । पाश्चात्य सभ्यता में आकण्ठ डूबे होने के कारण वे अपने तुच्छ स्वार्थो की पूर्ति और तुष्टि के लिये उन्होंने भावी भारत की निर्मात्री पीढ़ी के भविष्य के साथ - साथ देश के भविष्य पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया । 
ऐसी स्थिति में अब वर्तमान पीढ़ी को ही भारत को इंडिया के चंगुल से मुक्त कर उसे पुन विश्व की महाशक्ति बनाने व जगद्गुरू पद पर प्रतिष्ठित करने का दायित्व लेना होगा । इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये भारतीय शिक्षा प्रणाली को पुर्नजीवित करना होगा । संविधान में संसोधन करा इंडिया शब्द की बजाय भारत का प्रावधान कराना होगा तथा देश की किशोर व युवा पीढ़ी को राष्ट्र की सांस्कृतिक चेतना के साथ जोड़ना होगा ।

जय श्री राम 


लेखक: विश्वजीत सिंह अनंत