मंगलवार, 19 मार्च 2013

ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगते २१वी सदी के भारत के कर्णधार(CHILD LABOUR)


शिक्षा लेने की उम्र में भीख मांगने की मजबूरी



रोज घर से कार्यालय जाते समय दिल्ली के नारायण फ्लाईओवर के पास ५-७ मिनट का ट्रैफिक जाम सामान्य सी बात है..मगर एक और घटना रोज घटती है जिसे हमने रोज लगते ट्रैफिक   जाम की तरह स्वीकार कर लिया है..वो है,इन्ही सिगनलों पर भीख मांगते कुछ अवयस्क बच्चे..मेरी भी दिनचर्या में कुछ ऐसा ही था,एक आँखों ही आँखों में अनकहा सा रिश्ता बन गया था इन बच्चो से,रोज मेरी कार वहां रूकती, कुछ जाने पहचाने चेहरों में से एक चेहरा मेरी ओर आता और मैं वहां के कई लोगो की तरह पहले से ही निकाल के रक्खे गए कुछ सिक्कों में से १ या २ उन्हें देकर दानवीर बनने की छद्म आत्मसंतुष्टि लिए आगे बढ़ जाता..

व्यस्तता के कारण कई दिन बाद कार्यालय जाना हुआ ..मगर आज एक नए चेहरे ने उसी जगह आ के हाथ फैला दिया रोज की तरह मैंने गाड़ी शीशे निचे करते हुए १ रूपये का एक सिक्का उसकी और बढ़ा दिया मगर नए चेहरे को देखकर अनायास ही निकाल पड़ा "नया आया है क्या?"बच्चा मेरी और देखता हुआ बिना कोई जबाब दिए सिक्का लेकर आगे बढ़ गया...

कमोवेश ऐसे वाकये आज हर एक महानगर में आम हैं और प्रतिदिन हम इनसे दो चार होते हैं मगर एक सिक्के तक ही हम सब अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते है..
आज अगर हम सरकारी आंकड़ो पर गौर करें तो समाज कल्याण विभाग के अनुसार अकेले दिल्ली में लगभग ६०-७० हजार बच्चे भीख मांगते हैं..अगर इन्ही सरकारी आंकड़ों को आगे बढ़ाये तो कुल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र(NCR ) में इनकी संख्या लगभग १२५,००० से ऊपर बैठती है..अब मुंबई के आंकड़े ले तो लगभग ३४५,००० बच्चे यहाँ भीख मांगते है प्रतिदिन ट्रैफिक सिगनल पर..
अगर यूनिसेफ के आंकड़ों की माने तो पूरे भारत में लगभग १८० लाख बच्चे सडको के किनारे रहते हैं जबकि पूरे विश्व में ये संख्या लगभग ४४० लाख है..इनमें से यदि २०% बच्चे भी भीख मांगते हैं तो भारत में प्रतिदिन ३६ लाख कर्णधार ट्रैफिक सिगनल पर कटोरा लिए होते हैं..जिसमें से ज्यादातर जनसँख्या महानगरों में है...अकेले दिल्ली और आस पास के क्षेत्रों में ये संख्या लगभग १.५ लाख है..आज बढ़ते हुए औद्योगीकरण के ज़माने में भीख मांगने का उद्योग भी एक अच्छे खासे उद्योग का रूप ले चूका है जिसकी दिल्ली में अनुमानित सालाना कारोबार लगभग २१५,०००००० (२१५ करोण) रूपये का है ये अभी न्यूनतम आंकड़े हैं शायद इनका वार्षिक कारोबार इससे दोगुना या तीन गुना तक है..ये तो हुए दिल्ली के आंकड़े तो पूरे भारत में इस उद्योग का सालाना कारोबार खुद ही आप अनुमान लगा सकते हैं|
इस अमानवीय उद्योग के लिए कच्चे मॉल के रूप में बच्चे पिछड़े इलाको से, अनाथ बच्चे, या माता पिता द्वारा फेके हुए होते है ..कुछ परिस्थितियों में गरीब माँ बाप इन बच्चों को बेच देते हैं या उनके साथ खुद भी इस उद्योग का हिस्सा बन जाते हैं|
अब हम गौर करें व्यवस्था पर, तो ये कुटीर उद्योग हर महानगर के ट्रैफिक सिगनल या चौराहों पर फल फूल रहा है, जहाँ से पुलिस चौकी की दूरी ज्यादा से ज्यादा २०० मीटर होती है..फिर भी ये व्यवसाय बढ़ता जा रहा है इसका सीधा सा कारण है व्यवस्था में हरामखोरी या हफ्ता लेने की आदत..हर भीख मांगते हुए बच्चे के लिए लगभग ५० रूपये उनका मालिक(इलाके का गुंडा) प्रतिदिन के हिसाब से सम्बंधित थाने में पंहुचा देता है..प्रकारान्तर से अपने पूर्वस्थापित मार्गो के द्वारा ये कमाई बंदरबांट होते हुए सरकार के आला अधिकारीयों एवं मंत्रियों तक पहुचती है..

इन बच्चो के ऊपर उद्योग की तरह प्रबंध तंत्र होता है जिसमें महिलाएं भी शामिल होती है जो ये निगाह रखती हैं की ये बच्चे भीख के पैसो की चोरी न करें या कहीं भाग न जाये..दिन के अंत में हमारे कर्णधारों को मिलता है आधे पेट भोजन ,१०य २० रूपये और गलियां..और हमारी व्यवस्था दलाली खाते हुए मूकदर्शक बनकर इस जघन्य कृत्य में सहभागिता करती है.

अब जरा आगे बढे तो ये बच्चे बड़े होते होते चोरी करने,चेन खीचने,जेब काटने एवं अन्य छोटे अपराधो में पारंगत कर दिए जाते हैं...थोडा अनुभवी होने के बाद ये बच्चे पूर्ण रूपेण सरकार एवं व्यवस्था संरक्षित अन्य उद्योगों, जैसे जरायम माफिया अंडरवर्ड में लगा दिए जाते हैं और शनै शनै कर्णधारों की दूसरी पीढ़ी ट्रैफिक सिगनल पर आ चुकी होती है..
मानवाधिकार आयोग,बालश्रम आयोग,यूनिसेफ जैसी दर्जनों राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय सरकारी गैर सरकारी संस्थाएं मिलकर भी इस अमानवीय उद्योग में कोई खास रोक नहीं लगा पा रही..
कश्मीर में हर बात पे हो हल्ला मचाने वाला मानवाधिकार आयोग रोज हो रहे इन बच्चों के मानवधिकारो के हनन पर चुप रहता है... एक बलात्कार को ब्रेकिंग न्यूज़ बनने वाली मीडिया रोज हो रही बच्चियों के यौन उत्पीडन की कोई सुध नहीं लेती..और बात बात में झंडा ले कर खड़ा होने वाले सफेदपोश नेता उसी ट्रैफिक सिगनल से अपनी मर्सिडीज से गुजर जाते हैं मगर इस मुद्दे पर उनका मौनव्रत पिछले ६० सालों से नहीं टूटा..
आज जब श्री अन्ना हजारे जी और स्वामी रामदेव जी जैसे देशभक्त स्वयंसेवी भारत सरकार को लोकपाल और कालेधन के मामले में नाको चने चबवा रहें है,मगर इन बच्चों के लिए उनके पास भी कोई अजेंडा नहीं ..कोई विचार नहीं..
एक प्रश्न सरकार से : क्यों करोडो बांग्लादेशियों को खरबों खर्च करके हमारी सरकार, भारतीय बना रही है और देश के कर्णधारों को उसकी अपनी योजनाये ट्रैफिक सिगनल पर कटोरा पकड़ा रही है???



लेखक:आशुतोष नाथ तिवारी